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विजयनगरकी शासन व्यवस्थापनधर्म। [११५ mi
momwwwwwmomwrimmamimmi बिनाते थे और पा करके दान देते थे। सन् १५.७ में मोमकुडके कतिपय यात्री बन्दनाके किये जाये थे। सन् १४०९में गंगवतीके निवासी और भाचार्य चन्द्रकीतिक शिष्य मावष्णन बेल्गो
के गंगसमुद्र नामक स्रोपरकी भूमि खरीदकर गोम्मटस्वामीकी पुजाके लिये भेंट की थी। मायण भव्य भाव थे और सम्यक्ताचूडामणि
भाते थे। इस दानके समय प्रवणबेलगोलके पट्टश्रेष्टीगण मौर दो गौड़ उपस्थित थे। सन् १५१० में श्री पंडितदेवके शिष्य यस्तायिने वहाँ पर्वमानस्वामीकी मूर्ति स्थापित कगई थी। सन् १५१७ के मगमग बिडित नामक स्थानसे करिय गुम्मटसेट्टि एक संघ लेकर प्राणवेल्गोक पहुंचे थे और उनने स्नाय व्रतका उपापन काके संपका नादर-सत्कार किया था।
विजयनगर साम्रजपमें उत्तर भारत मुख्यतः माग्वाइसे बहुतसे हिन्द नाकर बस गये थे-उन लोगों का उधर पाना बाना बना ही साताबा। इनमें बहुनसे जैनी भी थे। श्रवणबेलगोलके लेखों में हम मारवाड़ी जैनोंका विशेष लेख है । सम्राट देवराय द्वितीयक समयमें इन लोगोंका स्लेख "उत्तमपथ-नगरेश्वदेवतोगसक" रूपमें हुआ है। सन् १९८६ में मारवाड़ निवासी मूलसंधी श्रीनगमुजे बगद नामक मात्मा सज्जनने एक जिनमतिमाको स्थापना वणवेल्गोकमें कीवी।
सन् १९८८ में पुरस्थान नामक स्थानसे गोमट भूपासमानोराबारी कविकांशी बने सम्बंधीजनों मति प्रणवेल्गो की दवा पिलाये थे। उस विषमकामें उत्तर भारसे यात्रियों का
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