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________________ विजयनगरकी शासन व्यवस्थापनधर्म । [ १२३ कुदरमें एक जिनमंदिरका जीर्णोद्धार कराया बस्न १२६७ में उनका समाधि मरण हुमा था। सन् १९०२ में कुष्परकी प्रसिद्धि दर२ तक कैक गई थी। नगरखंडपदेशमें यह प्रमुख नगर बायांक एक मिनमंदिरको कदम रामाओंसे शास्न पत्र आता । उसी बैत्यालयमें प्रसिद्ध चन्द्रपम रहते थे, जो पार्श्वनाबके बाये। उनके पिता दुर्गेशने पंडितदेवको उनका गुरु निर्धारित किया था। इन विद्वानों द्वारा वहां निरन्तर जैनधर्मकी मापना होती थी। सन्१५०८ ..के एक शिलालेखमें कुटाकी प्रशंमामें लिखा है कि "कर्णाटकदेश सब देशो सुन्दर था। उस कर्णाटक प्रदेशमें गुतिनाबा, जो १८ कम्पों में विभक्त था। उस कम्पों में सर्व प्रसिद्ध नगर खंड नाडुवा । कुष्ष्ट्र। उसकी ही राजधानी थी। शिलालेखमें कुप्पटूाको नगरखंउका भूषण कहा है, जो पर्व चैत्यालयों, कमलसरों, कामपाटिकामों और गंपशाकि चावलों के खेतोंसे मुशोभित था । कण्ट्रका वह विशाल वैभव भव्य प्राक्कों की उदारताका ऋणो था। मावकगण ऐसे संकीर्ण-हृदय नहीं थे कि अपने नामके लिये रुपया केवल साम्प्रदायिक कार्यों में स्वर्चते हों, बल्कि ये कोकहितके कार्यो सपने धनका सदुपयोग करते थे। उस समय भावकगण देशकी गणनीति पौर समृद्धिपक कार्योको करने के लिये अग्रसर हो रहे थे। नी के शासक निर्माता (King Makers ) ही नहीं, नगरनिर्माता 1-"भव्य-बन-धर्मावादि संततं सके -चत्यालयदिन्द -गालिद उचानदि गपशामि-त्-क्षेत्र निकायदिन्द स्मरणीयं बेसु-विमुरामिक - -.- सालिन्द्र मलति के रवैरिगोट-कोल्याच्या मुहै मिनमा रे-मेरेा परिसम्मोह:- .-110 - -
SR No.010479
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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