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________________ - ९०] मंसि निर्माण किया था। राजा नायके में म. १३३१० में उनकी ज्येष्ठ ममनियों या राज्यविभरिक सा मंदिरको ममिदान दिया था। दोनों में बोलती और सोमवेयी जैनधर्मकी जनन्य उपासिका थीं। मध्यापिकरिया बाल अधिकारी अपनी धार्मिकता के लिये प्रसिद्ध थे। बोनाकी विलालीमें समस्तभुनाय'-'श्रीकृषीवलम' और महामवापिस बिहनोंसे साकि वह एक हद तक साधीन शासक थे।' इनसोगेके भट्टारकगण और मैग्ष नरेश। उपरान जब काकलके इन जैन शासकोंपर किंगाल मतन्त्र पमा पहा, तो हनसोगेके जैनगुरु मागे माये और उन्होंने इन राजाओंका मन पुनः स्याद्वाद सिद्धान्तके प्रति ऋजु किया। इनसोगेके भट्टारक ललितकीर्तिमरूपारिदेषके उपदेशसे मैनेन्द्र नरेश और चन्दामा पुत्र वीरपाख्य नृपन्दने कारकळमें एक विशाखकाय गोम्मटपतिमा निर्मापित कगई की। स विशाल मूर्तिकी प्रतिमा महोत्सव बुधबार सन् १५३२ को सपसे किया गया बरकरके निकटवर्ती ग्राम तिरिमाडिमें स्थित हरे नबीसदिको मीदोंने दान दिया था।' सन् १५३१.में बी नरेश पाणयेगोरके गोमवर मूर्तिके लिये दान दे चुके थे। पुरा weafww. सना पाने कोकोने nिt डोहापा। डिरिवारिक व्यापारियो उनके मोसेन .. ., . , २-० - १९, -- बेस्मा., . २९.
SR No.010479
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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