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विजयनगरकी शासन व्यवस्था व जैनधर्म। [९७
सोमवंश, काश्यपगोत्र, सत्पात्रदान- जिनधर्मधुरम्बर, कारफळ सिद्ध सिंहासनामीश्वर ।"" इस बिरुदाबक्री से भैरव नरेशके व्यक्तित्वकी महानता स्पष्ट है। जिनदत्तराबके समान ही वह बीर और जैनधर्मके जनन्य मक थे। उनके पश्चात् कारककमें निम्नकिखित रामामने शासन
था। १- पांख्यदेवरस अथवा पांड्य चक्रवर्ती, २- लोकनाथ देवरस, ३-वीरपांख्यदेवरस, ४ - रामनाथ भास, ५-मैक्स मोडेन, ६ - वीर पांड्य मैग्स थोडेप, ७- अभिनव पांख्यदेव (पांडय चक्रवर्ती) ८- डिरिब भैरदेव ओडेय, ९-१०मडि भैरबराब, १०- पाण्डयट मोडेव ११ - इमडि नैरमराय १२ रामनाथ १३ - वीर पांख्य । यह सब डी राजा जैनधर्मके उपासक महान् वीर थे। देश और धर्मकी रक्षा के लिये वे सदा तत्पर रहते थे । अन्तमें कारक के इस राजवंशको भी बोर शैवोंने अपने धर्म में दीक्षित कर किया था। इस पर भी वे बैनधर्म के सहायक रहते थे
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प्रथम नरेश पांख्यदेवराजने सन् १३३४ में कार करूके पास हरिवनगडीकी गुरुगलवस्ती नामक जिनमंदिरको दान दिया था। राजा कोकनाबास द्वारा तुलुपदेशमें जैन धर्मका विशेष प्रचार किया गया था । 'बल्ला करायचित चमत्कार' विरुद घारी श्री चारुकीर्ति पंडितदेक उनके शिष्य थे। कारकरमें मूकसंघ क्राणुरगण के भाचार्य मानुकीर्ति मारिदेव के पट्टशिष्य कुमुददेव भट्टारकने म० शान्तिनाथका भव्य
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कलकी केफियत - जेसिमा० भा० ३ १० १९ । २-बही ...३२ । ३-मेजे०, १० २८० । ४-वही. पृ० ३६१।५-मे• १० १२९ ।