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________________ भामा मया पतिविम्मित होना समाविकीसोनागरिकोने विवर्म-मन्दाकिनी सी उमस बार पाठक मागेके एक प्रसंगमें पड़ेंगे। कारकरके बैरम कासक और मैनधर्म । कारकाके मेस्स बोडेपपर शासकगण भी विजयनगर साम्राज्य पकिसाठी सामन्त थे। उनका सबकुल मथुरा के प्रवंशी नमामोसे सविसबा, जिनमेंस गना साकारका पुत्र जिनदताय दक्षिण मास्तमें मार शासनाधिकारी हुमा था। उन्हीं बिनदतमयके वंशज कार के मेरा नरेश थे। इस वंशके मादि नरेश रामु पोम्बुपके निकट रिपसे नामक म्यानपर महरू बनाकर हनेगे थे। एक विमोश सपने महासे दक्षिणकी मोर मीन देखने गये तो म्होंने कहा एक कारे वृक्ष के नीचे गाय बोर सिंहको पाव साब पेमसे ममतापूर्वक बैठे हुये देखा । उस म्यानको महत्वशाली जानकर होने वही एक सुंदर जिनमंदिर बनवाया और उसमें अपने कुछदेवता मेमीस्वामीकी मूर्ति स्थापित की। कार वृक्ष तेक गड नौर सिंहको पट्टा पाने के कारण उन्होंने अपनी गजधानीका नाम भी बरकमला बा । उनकी विरुनाबली निम्न प्रकार भी: स्वस्ति श्री महामण्डलेश्वर, रिगयागंड, नाडिदमागे लप्पुक mis, मरे होकर काय, मरेता गेलुब, मल्लवंटर.... विक, परमही होबर, नरपतनाकु-मंडलिका-ड, गुन्जिनियर-is, मुख-पुरवायचा, सुवर्णाशस्थानाचार्य, मी वीर मेवेन्द्र B,
SR No.010479
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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