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विजयनगरकी शासन व्यवस्थापनधर्म। [९१ विवाण दिया है, उससे TA नगरकी समृद्धि और बहार धर्मके पावल्यका पता चला है । उममें लिखा है कि तौलवदेशमें संगीतपुर सौभाग्यका ही निकेत वा-उसमें उसंग चैत्यालय बने हुये थे। बहर मुखी, उदार और भोग विकासमें निमम नागरिक रहते थे और हाथी घोड़ेसे वह भगपुरा वा संगीतपुरमें महान योद्धा, उचकोटिके कविगण, बाती और पता रहते थे। यह नगर सास्तीका नागस होरहा बा, क्योंकि वहां उच्च साहित्यका निर्माण होता था। संगीतपुर मपनी कलित कलाओं के लिये भी प्रसिद्ध था। उस महान् नगामें उस समय महामंडलेश्वर सालुवेन्द्र शासनाधिकारी थे। यह सालुपेन्द्रनरेश बिनेन्द्र चंद्रगुप्तपमुके चरण चंचरीक बने हुये थे। उनका हृदय सत्रय धर्मके किये मुड़ मंजूषा था। उन्होंने संगीता मतीय उत्तुंग और नबनाभिराम जिनचैत्यालय बनवाये थे, जिनमें विशाल मंस और सुन्दर मानस्तम बने हुये थे। धातु और पापाणकी भव्य मूर्तियां भी न्होंने निर्माण कगई थीं। नगरमें मनोरम पु वाटिकायें बनवाकर उन्होंने नगरकी शोभाको बढ़ाया था। नागरिक उनमें बाकर मानन्दकेलि करते थे। इतने पर भी सालुवेन्द्र नरेशको इस बातका ध्यान था कि नगरमें धर्ममदा अक्षुण्ण रहे। इसीलियर मंदिरोंको धर्मव्यवस्था ठीक रखने के लिये सतर्क रहते थे। मंशिक नियमित धर्म क्रियायें होती रहे, इसके लिये नोंने दान-व्यसम्पा की थी। देवपूजा, परिषि दान और विद्वानोंको सिलान किये भी व्यवस्था की गई थी। सारांश कि सालपेन्द्र नरेशन रामपके. भाव और पर्म मर्यादाको ठीक तरहसे निवाहा बा। मिनेन्द्रके,