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________________ ९.] संसिन इतिहास । . . . ससक होते हुये भी मरसका शौर्य और भुषविक्रम मेकविरूपाता। बेडर नामक पासी कोग सभ्य बीवनके लिये फरक हो रहे थे, बसा संस्कृतिकी गति मतिको मागे बढ़ानेके लिये बेडरोंको शक्तिहीन करना नावश्यक वा। वीर मरस जंगली बातिके उन कोगों के विरुद्ध बा हटे। घोर युद्ध हुमा । अन्तमें बेडर परास्त हुये! चाला नरेश विकमराम यह सुनकर प्रसमा हुने । महरसके चौकी उन्होंने प्रशंसा की | मरसने अपनी इस विषयको 'बेपुर' बसाकर मूर्तमान बनाया था। उन्होंने कलहाल, चिलुकुण्ड, मल्लराज पण, पालुपारे गादि स्थानोर दुर्ग बनवाये थे और कई अन्य स्थानों पर ताबा खुदवाये थे। मगरसने कई जिनमंदिर बनवाये थे, परन्तु उनमें 'यमगुम्बासति' नामक जिनमंदिर उल्लेखनीय बा। उस मंदिरमें बनाने म. पार्श्वनाथ, पद्मावतीदेवी भोर चनिगमगकी मूर्तियां स्थापित कराई थी और बड़ा सव मनाया था। संगीतपुरके सालुबनरेश और जैनधर्म । बपि बाङ्गलब नरेशोंने चैनधर्मोत्कर्षके लिये जो कार्य किये प्रशंसनीय थे, परन्तु संगीतपुर. बेरसोंपे और कारकरके सामन्त शासकोने जैनधर्म के लिये भटूट परिश्रम किया था। संगीतपुर (हा. हल्लि) से काइयगोत्री चन्द्रवंशी सामनरेश तोम देशर शासन लते थे। सन् १९८८1. एक शिलेसमें बो संगीतपुरका १-० १. ११५-११६ मारके प्रसंग द्वारावतीसे भारी के साथ मारपूर्ण देश से थे और साल पर पान पाते थे। (. ) ...... . . . . . ..
SR No.010479
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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