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________________ mastanisaniamayan weat तो उसे सलेसनाने में देते है और न अकसे हो, इसके लिये निषिक कर देते हैं। गुरुनोंक पास्की समयसमा प्रचार समुचित पवा। मलेखनाके समय में निन्द्रदेवका ध्यान भोर णमोकारमंत्रा स्मरण करते हुवे एवं नियोको पाते हुये मुमुक्षु स्वर्ग-सुख पाय फाते थे। स्वर्गवासी बन्धुणोंकी स्मृतिम निषि और वीरगल बनवाये जाते थे। इसन जिलेके गोवर नामक स्थानसे जो · निषधिकल ' (निधिका शिलापट) पाठ हुना है. 88 पर तीन भागों में तीन दृश्य नाकीर्ण है। तक मानों पाहे ही इन दो श्राविकाओं के चित्र उत्कीर्ण हैं, जिन्होंने सल्लेखमा विषिसे माम विसर्जन किया था। वे वीरवर सत्य म्गेरेकी पलियां गौर भाचार्य नयकीर्तिदेव सिद्धतिशकी शिना भी। पतिक बीगतिको प्राप्त होने पर उन्होंने लेखनावत लिया था। इसके उपर दूसरे श्यमें दोनों श्राविकायें देवागनामोंसे वेष्टित विमानमें स्वर्गको बाती हुई दिखाई देती है। इस दृश्यक प्रदर्शनसे सलखना-का माहास्य बनताके हृदयमें घर कर जाता था। तीसरे दृश्यमें मिनेन्द्र भगवन्की मूर्ति बहिन है, जिनपर दो देवाशनाय चमर ढोल रही है। "जिनेन्द्रकी भक्ति ही स्वर्गमुखदायिनी है"-इस सत्यका बखान निधिलके इस दृश्यसे होता था। सारांशतः नैनाचारको पालन पानेका समुचित थान संघमें रक्खा बाता था। साम्प्रदायिक विद्वेष और पारस्परिक प्रमाव। . किन्तु इसने पर भी, यह मानना पड़ेगा कि उस समय वर्गRAH, IOS.P.T+
SR No.010479
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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