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विजयनगरकी शासन व्यवस्थापनधर्म। [१]
विका उनोने मेशा ध्यान सा का।' मिमंदिसमोर चर्तिकी बनवाना, शाम लिखकर भेट करना, पाठशाम स्थापित करना, .x बीपर्मायतनोंका उद्धार करना नादि धर्मकार्य थे जिनको मायक किया करते थे। मंदिरों में नदीकर द्वोपके बिनाव्यों की भी रखना कराई जाती थी। भावक भाविकायें जिनमूर्तियों के अतिरिक सीयों और गुरुलोंकी पूजा करते थे। मामें चापकों के साथ एक भी चढ़ाये जाते थे, जिनके लिये मायक मंदिरोंको बाग वानमें देखें थे।'भाबक और मुख्यतः श्राविका अनन्तबा माविका पान करके उनका ग्यापन को उत्सबसे मनाते थे। शासनदेवोंक्षेत्रपा क्षणीकी भी मूर्तियां बनाते थे और उनको पूजते थे। गन्तमें समाधिमाण पूर्वक अपनी बीवन कीला समात करने में लोग गौरव बनुभव करते थे।
समाधिमाण भयबा सल्लखानावत गुरुकी बाबासकी किया था सकता है। गुरु महाराज यह समझ लेते है कि भक्तका बीवन
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1-ASM, 1942, 181-181. '...अब ना धर्ममगन कुलाचारं गल बेसेंदतागिरेमालु पुनरियं मार पुन्या सत्कीति तनिधिय मधिणं बोम्न मेरु धयमनु ।'- मनमताबद्धव - - सम्यानाकर तिलक' इत्यादि। 2-ASM., 1941. P 2043 Tbid, 1942, p. 186. x लेविर थम केस नं. ३५ Ibid 1937, p. 185. 3-Ibid., 1942, pp 40-11 ४-18 निधिलेख नं. ३६ से स्पष्ट है कि हर मादप्णने निधो के सिं मिदान दिया था। (ASM, 1931, pp 164-165) 5-lbid., 1939, p. 152. 6-lbid, 1930, p. 175 7-Ibid 1911, 204. 8-Ibid 1912pp. 181-185.'