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भगवान अरिष्टनेमि, कृष्ण और पाण्डर। [७१ यदि ऋषभदेवको रक्षाकु माना जाय जिनमे नमि विनमिने राज्यकी याचना की थी, तो किस वंशके विकुक्षि और उनके भाई निमि जैन शाम्रके नमि विनमि अथा सुझच्छके पुत्र विकच्छ हो
उधर वैचीलनके राजाने वशदनेजर अपने को 'मुजातिका देव (-नम्पति) और रेवा नगरके गज्यका स्वामी लिखना ही है, जिसे हम दक्षिण भारतमें अनुमान कर चुके हैं। यह गजा अपने दान. पत्रमें यदुगज (कृष्ण) को गजधानी द्वारिकामें आनेका विशेष उल्लंब करना है और वन पर्वनमे निर्वाण पाये हुए भ० नेमिके सम्मानमें एक मंदिर बनवाकर उन्हें अर्पण करनेमें गौरव अनुभव करना है।
इसमें स्पष्ट है कि यदुगज प्रति उसके हृदय सम्मान ही नहीं बल्कि प्रन था। उसका कथन मा ही भासता है जैसे कि कोई नया भादमी अपने पूर्वजोंकी जन्मभूमिश्र पहुंचकर हर्षागार प्रगट करना से।
यादवोंका मथुग छोड़कर मुगष्टमें आना भी उनको मुनातिमे सम्बंधित प्रगट करता है। क्योंकि आपत्तिके ममय माने ही लोगों की मद मादी । मधुमें जगमिथुन दुःस्वी यादव सुगष्ट्रमें आये, इसका अर्थ यही है कि अको सुगष्टवामियोंपर विश्वास था-वे उनके भागा भगवा ! उनके एक पूर्व ही मुवीर नामसे प्रसिद्ध हुये ही थे और उपर मुजातिक नृप यदुगजके प्रति प्रेम और विनय प्रगट करते हैं।