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७१] संलिस मेन इतिहास
इस सब वर्णनमे यह स्पष्ट है कि यादवोंका सुराष्ट्रवासियोंमे विशेष समन्ध था और मध्य एशियाके मु मेरे राजा भी उन्हीं के सजातीय थे । जैन शाम्रोंमे कहा गया है कि कृष्णका राज्य वैतान्य पर्वतसे समुद्र पर्यन्त विस्तृत था। यह वैताढ्य पर्वत ही विद्याघरोंका भावास और नामिविनामिक गज्याविकामें था।
इममें स्पष्ट है कि कृष्णके साम्राज्यमें मध्य-ऐशिया भी गर्भित था। प्राचीन भारतका आकार उतना संकुचित नहीं था, जैसा कि वह भाज है । उममें मध्य ऐशिया मादि देश मम्मिलित थे। मिन्धु और मुमेर सभ्यतामोंके वर्णनसे ऐसा ही प्रतीत होता है कि एक समय मध्यऐशिय! तक एक ही जातिके लोगों का भावास प्रवास था।
पूर्वाल्लिखित दानपत्रमें सुमेरनर नवशदन जा अपनेको रेवा. नगरका स्वामी लिखता है जो दक्षिण भारतमें बा (नर्मदा ) बटपर होना चाहिये । इसमे प्रगट है कि नर्मदामे लेकर मेमोपोटेमिया तक उसका गल वितृन था। एक गज्म होने के कारण वहांक लोगों में पर व्यापारिक ब्यकता और भादान-प्रदान होता था । यही कारण है कि भारतीय सभ्यता जैसा ही मभ्वना और सिके एवं वेलीप मध्य एशिया के लोगों में भी तब प्रचलित थी। ___एक विद्धानका कथन है कि इन सु-जाति के लोगोंके धर्मसे मैनधर्म उत्पन्न हुमा और गुजरात तथा सुराष्ट्र के मेन वणिक इनी
१-मातृधर्मकथासूत्र (हैदराबाद ) पृ. २२९ व हरि० पृष्ठ ४८१-४८२। २-"सरस्वती" भाग ३८ अंक १ पृष्ठ २३-२४ ।