SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 92
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७२] मंक्षिप्त जैन इतिहास । पुत्र नमि-विनभिको नागगज धरणेन्द्र माने साथ लेगया था और उन विद्याधर्गका गजा बनाया था। उन्हींकी मन्नान विद्याधर नाममे मध्य एशिया आदिमें फैल गये थे। यादवोंके पूर्व पुरुष भी विद्याधा थे। उपर्युलिम्वित विद्याधर्गके पूर्वज नमि - विनमि कच्छ महाकच्छ अथवा मुमच्छर पुत्र थे. जिसका अर्थ यह होता है कि उनका भानाम भी सुगम ( काठियावाड़ ) था। उनके पिता कच्छ महाकच्छ देशके प्रमुग्व निवासी होने के कारण उस न:ममे प्रसिद्ध हुये प्रतीत होने हैं। और कर, मद , अथवा मुकच्छ देश भाजकल के कच्छ देशके गम मीत सिंच नवर्ण मादि ही होना चाहिये । हममे भी यही बनिन होता है के मुजानिक लोग मध्य ऐशिया मादि देशोंमें जाई थे । नमे अथवा मुजातिक गजाओक नाम भी प्राय: वही मिलन है जो कि भारत के सूर्यबंशी गजाओंके हैं। सुमेर राजाओं की किशवंशावलीमे इ. वाकु, विकुक्षि ( जिनके माई निमि थे ), पुरंजय. मानेतु ( नक्ष ), मगर, बु. दशाय और रामचंद्र के नाम मिलने हैं। १-बापु. मग १८१४०९१-५२ व . मी . १२७-१३.। २-'तु..' नाम क्या उन्हें 'सुज तम त नहीं प्रगष्ट ता ! उत्त'पुण' (६६ ६७) में एक 'सुकच्छ' नामक देशका स्पष्ट उलेख है। देशके निवमी मु.जातीय होने के कारण महाकच्छ सुकट नामले प्रसिद्ध हुए प्रतीत होते है।
SR No.010475
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy