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________________ भगवान अरिष्टनेमि. कृष्ण और पाण्डव । [७१ निवासी 2; यही कारण है कि उनके निवास की मूल भूमि काठि. यावाड़ · सुवर्णा · अश्वा । -रष्ट' नाममे विख्यात थी। 'महाभारत' में सिन्धु-मुणः-रदेश' और जातिका उल्लेख है। 'मु-वणां' का अर्थ '' जात होता है। जैन शासक मिन्धु-मौवी देशका लेप हुआ मिलता है। मोवी दश अपनी प्रमुग्व नगर मोवा पुरक कारण ही प्रख्यातिमें आया प्रतीत होता है जिसे यादवगना मुचीने स्थापित किया था ! सुबक अर्थ जानिका का होता है। इनके पहले और उपरान्त काय इा व 'मु.' म जन शामेिं भी हुआ है।' इ. नुवा लगा माता+। माय सिंधु उपत्ययकाकी मायनाम था : __ भानीय मत है कि पु-जानीय (Sumerivn ) HAIका विम in Hiमें हुआ था। -जानिक लोग मुराष्ट्र में ही नका मा नयाचे बम थे। जैन शास्त्रामे हमें पक प्रसंग मरना है में कहा गया है कि कच्छ-महान्छके १-fas.! ..." मा० ९८ अ ट ६२६में प्रकाशित "सुमे . . म भ ' शीर्षक लेम्व देखना चाहिये । २-भगमनं मुत्र पृ० १८६६ (सिंधुनमु मणवरमु ) हरि०३-३-७; ११-६८ इत्यादि। 3-Lorel Tristanemi, p. :37. ४-६० ११-६४-७६ : ४९-१४; पाक० १-१..; नाच.१-१५-७; कच०३-५-६। ५-"विशालभारत" भा. १८५
SR No.010475
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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