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________________ ६१] संमिशन इतिहास। स्पष्ट है कि उसके समय जैनधर्म वामिल देशमें गहरी जड़ पकड़े हुवे था। वहां जैनियों के विहारों और मठोंका वर्णन पदपदपर मिलता है। जनता भैन मान्यताओंका घर कर जाना उसकी बहु प्राचीनताकी दनक है।' मीनप्पदिकारम्' भी इसी मतका पोषक है।' उपलब्ध पुगतत्व भी हमारे इस मतकी पुष्टि करता है कि जैनधर्म दक्षिण भारतमें एक अत्यंत प्राचीनकालमें पहुंच गया था। जैन ग्रन्थ करडु चरित' में जिन तेगपुर घागशिव आदि स्थानोकी जैन गुफाओं और मूर्तियों का वर्णन है, वे आज भी अपने प्राचीन रूपमें मिलती हैं। उनकी स्थापनाका समय म० पार्श्वनाथ (ई० पृ० ८ वीं शताब्दि ) का निकटवर्ती है। इसलिये उन गुफामों और मूर्तियोंका मस्तित्व दक्षिण भारतमें जैनधर्मका मस्तित्व तत्कालीन सिद्ध करता है। इसके अतिरिक्त मदुग और रामनद जिलोंमें ब्राह्मी लिपिक प्राचीन शिलालेख मिलते हैं। इनका समय ईस्वी पूर्व तीसरी शतादि अनुमान किया गया है। इनके पास ही जैन मंदिरों के अवशेष गौर तीर्थकरोंकी खंडित मूर्तियां मिली हैं। इसी लिये एवं इनमें मंकित शब्दोंके भाषारसे विद्वानों ने इन्हें जैनोंका प्रगट किया है।' इसके माने यह होते हैं कि उम समयमें जैनधर्म वहांपर अच्छी तरह प्रचलित होगया था। मगरमले ( मदुग) एक प्राचीन जैन १-गुस्ट, पृ. ३० ६८१ । २-माई०, पृ. ९३-६४ । ३-अमेरिका, भा. १६ १० सं० १-२ मोर करकण्ड चरेप (कारंबा) भूमिका । ४-साई., मा० १ पृ. ३३-३४।
SR No.010475
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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