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रमिन मारतका ऐतिहासिक काल। [. थुग, पोलासपुर,' महिले. महामोकनग! इत्यादि स्थानोंच बाचीन वर्णन मिलना है। दक्षिणमथुराको स्वयं पाण्डवोंने बसाया था। पल्लबदेशमें भगवान मरिष्टनेमिका विहार हुआ था, जैसे कि हम मागे देखेंगे। वे ऐसे उल्लेख है जो दक्षिणमारतमें जैनधर्मके मस्तित्वको भदबाहु मामीसे बहुत पहलेका प्रमाणित करते हैं।
यही बात सामिल माहित्यमे सिद्ध होनी है। मामिल माहि. त्यमें मुख्य ग्रन्थ " मंगम-काल " के हैं, जिसकी निथिक विषयमें मित्र मत हैं। माग्नीय पंडिल उस कालको ईम्बीनमे हजारों वर्षों पहले लेजाने है किन्तु माधुनिक विद्वान् ठमे ईम्सीमन में चार-पांचो वर्ष पहले ईबी प्रथम शताब्दितक अनुमान कान है। यह जो भी हो, पर इनना तो स्पष्ट की है कि 'संगमकाल' के ग्रंथ प्राचीन और प्रमाणिक हैं। इनमें नोल्कापियम' नामक ग्रन्थ सर्व प्राचीन है। इसका रचनाकाल ईम्वीपूर्व चौथी शतादि बनाया जाता है और यह भी कहा जाता है कि यह एक जेन रचना है। इसका स्पष्ट बर्ष यही है कि जैनधर्मका प्रचार तामिलदेशमें मौर्यशाम पहले होचका पा। तामिलके प्रसिद्ध काव्य मणिमेस्ले' और • मीलप्पतिकारम' हैं और यह क्रमशः एक बौद्ध और जैन लेखसकी ।चनायें है। इनमें अनधर्मका खास वर्णन मिलता है। बौद्धकाव्य मणिमेखले से
१-जातृधर्म कथांग सूत्र पृ० ६८० व पु. पृ० ४८७ । २-तगडदशांग सूत्र पृष्ट २२ । ३-जन्तगरदशांग सपृ० ११ । ४-मगवती पृष्ठ १९९८ । ५-बुस. ( Budhistic Studies ) पृष्ठ ६७१। ६-गुल्ट०, पृ. ६७४ को बसाईमा० १.८९