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दक्षिण भारतत्र ऐतिहासिक काल। [११ वटपर मौजूद था। जैन मान्यता भी इसके अनुकूल है। उसमें नर्मदा तटको एक तीर्थ माना है मौर वहांमे अनेक जैन महापुरु पोंको मुक्त हुमा प्रगट किया है। वैमे भी हिंद पुराणों में वर्णनमे नर्मदा नटकी सभ्यता अत्यंत पाचीन प्रमाणित होनी है यद्यपि अभी. तक वहांकी जो खुदाई हुई है उममें मौर्यकाल में प्राचीन कोई वस्तु नहीं मिली है। होसक्ता है कि नर्मदा तरका वह केन्द्रीय स्थान ममी अप्रगट ही है कि जहां उसकी प्राचीनताकी घोतक अपूर्व सामग्री भूगर्भ में सुरक्षित हो।
मागंश यह कि जैन है नहीं बलिक प्राचीन भारतीय मान्य. तानुसार जैनधर्म का प्रवेश दक्षिणभारतमे एक मत्यन्त प्राचीनकालमे प्रमाणित हाता हैपरन्तु माधुनिक विद्वजन मौर्यकाल में ही जैन धर्मका प्रवेश दक्षिणमाग्नमें हुमा प्रस्ट करने हैं। वे कहते हैं कि सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य गुरु श्रुनावली भद्रबाहुन जब उत्तरभारतमें बारहवर्षका अकाल होता जाना तो वे मंघ सहित दक्षिणमाग्नको चले. माये और उन्होंने ही यहां की जनताको जैनधर्ममे सर्व प्रथम दीक्षित किया। इसके विपरीत कोई कोई विद्वान जैनधर्मका प्रवेश दक्षिणभारतमें इसमें किंचित् पहले. प्रगट करते हैं। उनका कहना है कि जब लंका जैनधर्म इस घटना में पहले अथांन इम्बीपूर्व पांचवी शतानि ही पहुंचा हुआ मिलना है तो कोई वजह नहीं किब
१-नवग्रह परिष्ट निवारक विधान पृ०४१। २-'सरखती' भाग ३८ क १ पृष्ठ १८-१९ । ३-मरिई. पृ. १५४, ई, पृ. १६५, लि, पृ. १८॥