SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 80
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संचित न इतिहास। है कि वह उनमे भी पाचीन हो क्योंकि सुमेरु लोगोंने भारतसे जाकर मेसोपोटेमियामें उपनिवेशकी नीव डाली थी। महागष्ट्र, निजाम हैदराबाद और मद्रास प्रान्त ऐसे प्राचीन स्थान मिळत हैं जो प्रग ऐतिहासिक काल के अनुमान किये गये हैं और वहांपर एक मन्यंत प्राचीन समयके शिलालेख भी उपलब्ध हुये है। यह हम बात के सबूत हैं कि दक्षिण भारतका इतिहास ईस्वी प्रारम्मिक शनानियोंमे बहुत पहले आरम्भ होता है। उपर प्राचीन साहित्य भी इसी बानका समर्थक है। तामिळ माहित्यके प्राचीन काव्य · मणिमेखले' और ' मीनप्पदिकारम् ' में एवं प्राचीन व्याकरण शाल योनप्पकियम् ' में दक्षिण भारतके खूब ही उन्नत और समृद्धिशाली रूपमें दर्शन होने हैं और यह समय ईसासे बहुत पहले का था । अतः दक्षिण भारत के इतिहासको उत्तर मात जितना प्राचीन मानना ही टीक है ! अब जग यह देखिये कि दक्षिण भारतमें जैनधर्म का प्रवेश करमा ? इस विषय में जैनियोंका दचिण भारतमें जो मत है वह पहले ही लिखा जानुका जैनधर्मका प्रवेश। है। उनका कथन है कि भगवान ऋष. भदेवके समयमें हो जैनधर्म दक्षिण भारतमें पहुंच गया था। उपर हिन्द पुराणों की मक्षी आषारसे हम यह देख ही चुके हैं कि देवासुर संग्रामके समय अर्थात् उस प्राचीन कालमें जब भारत म निवामियों में ब्राह्मण आर्य मानी वैदिक सभ्यताका प्रचार कर रहे थे, जैनधर्मका केन्द्र दक्षिण पथके नर्मदा
SR No.010475
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy