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राजा ऐष और उसकेन। [४९ रहते लिखा है तथा इन्हें सर्प अनुमान किया है। वास्तव में इसका माव यही है कि वे मनुष्य थे। विद्वानोंका कथन है कि भारतबकि मादि निवामी भर जातिसे नागलोगोंका सम्पर्क था। उनका सचिह सर्प था और वे ब्राह्मणों को मान्यता नहीं देते थे। एक समय वे सारे मारत ही नहीं बलिक मध्य एशिया तक फैले
नर्मदा तटमा उनका अधिक आवास था। उनमें जैनधर्मका प्रचार एक अति प्राचीनकालमे या। तामिल देशके शासकारोंने दक्षिण मारनके प्राचीन निवासियों नाग लोगोंकी गणना की। ऐतिहासिक कालमें नागराजामोंकी कन्याओं के साथ पलाशके रामानों के विवाह सम्बन्ध हुए थे। तामिक देशका एक भाग नाग लोगोंकी अपेक्षा नागनादु कहलाना था। जन पद्म पुगण नागकु. मार विचारों का भी उलब है।
गजा जयंघरके पुत्र हनी नाग लोगां एक मरदारके यहां शिक्षित मौर दीक्षित हुए थे । संभव है. इसी कारण उनका अपा. नाम नागकुमार था। उनका मात्र अवश्य नागोंमें रहा था। 'विष्णुपुगण' में नौ नागगजामोमें भी एक नागकुमार नामक थे। परन्तु यह मष्ट नहीं कि वह हमारे नागकुमारसे ममिन्न थे । नाग लोग भाने का मादर्य के लिये प्रसिद्ध थे। मुन्दर कन्याको 'नाग. कन्या' कहना लोकप्रचलित रहा है। नागकुमार मी अपने अलौकिक रूपके कारण सय कामदेव कहंगये है।