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४८] संमित जैन इतिहास। हिंसाको ध्यान दिया था। इस प्रकार दक्षिणापथके एक प्राचीन नगरसे वेदोंमे हिंसक विधानोंको स्थान मिला था जैसे कि पहले भी लिखा जाचुका है। राजा वसुके पुत्र सुवमु और वृदध्वज वहां न गह सके । सुवमु भागकर नागपुग्में जारहा और बृहदध्वज मथुरामें मा बसा ! बिसके वंशमें प्रतापी राजा यदु हुमा था।*
कामदेव नागकुमार। कनकपुरके पास राजा जगन्धा थे। उनकी एक रानी विशा. लनेत्रा थी, जिससे उनके एक पुत्र श्रीधर नामका था। एक रोज जगन्धर गजासे किसी वणिकने आकर कहा कि सौराष्ट्रदेशस्थ गिरिनगर के राजाकी पृथ्वीदेवी नामकी कन्या अति सुन्दरी है, जिसे बह राना उन्हें व्याहनेके लिये उत्सुक है । जयन्धर यह समाचार सुनकर प्रसन्न हुमा और उनका विवाह पृथ्वीदेवीके साथ होगया। कालान्तरमें रानी पृथ्वीदेवी के एक महा भाग्यशाली और परम रूरवान पुत्र हुआ, जिसका नाम उन्होंने प्रजाबंधु रक्खा । किन्तु उस नवजात शिशुके साथ एक अदभुत घटना घटित हुई। वह किमी तरह राजधायक हाथोंमे निकलकर नागलोगोंकी पल्ली में जा पहुंचा।
नाग-सरदारने उस शिशुको बड़े प्यारसे पाला, पाषा और उस शस्त्रास्त्र में निष्णात बना दिया। भारतीय साहित्यमें इन नाग. लोगोंका वर्णन अलंकृत रूपमें है। उसमें इनको वापियों और कुमोचे
*हरि. सर्ग १७ संभवत: निजाम राज्यका महादुर्ग नामक सान हमपर्वन नगर है। कहते हैं वहांहबारों जिनमतियां बमोदोस्त है।