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________________ ५.] संलित जैन इतिास। दक्षिण भारतकी अन्य राजकन्याओंमे उनका विवाह हुमा प्रगट है, परन्तु पला देशकी गजकन्याओं को उन्होंने नहीं व्याहा था। शायद इसका कारण यही हो कि स्वयं नागकन्यायें पल्लवोंको व्याही गई थी। यह सब बातें कुछ ऐसी है जो नाग लोगोंसे नागकुमारकी धनिष्टनाको ध्वनित करती हैं। होसकता है कि वे नाग वंशज ही हों ।* ____ जो से, युवा होनेपर नागकुमार अपने माता-पिता के पास कनापुर कोट माये और वहां सानंद रहने लगे। किन्तु उनके सौतेले भाई श्रीधरमे उनकी नहीं बनी। भाइयोंकी इस मनानको देखकर राजा जयंधरने थोड़े समय के लिये नागकुमारको दर हम दिया । ज्येष्ठ पुत्र श्रीधर था और उसीका अधिकार राज्यपर था। नागकुमार मथुग जापहुंचा । वहांके राजकुमारों-व्याल और महाव्याळसे उसकी मित्रता होगई । उनके माथ नागकुमार दिग्विजयको गया । और बहुतसे देशोंको जीना एवं गजकन्या भोंको व्याहा। महान्यालके साथ नागकुमार दक्षिण भाग्न किसिन्धमलय देशस्थ मेषपुरके राजा मेघवाहन अनिधि हुए। गजा मेघवाहनकी पुत्रीको मृदंगवादनमें परास्त करके नागकुमाग्ने उसे व्याहा । फिर मेधपुरसे नागकुमार तोपावलीद्वीरको गये। वहांसे लौटकर वह पांड्य देश आये थे। पांच्य नरेशने उनी खूब मावभगत की थी। *नाग लोगों के विषय में जानने के लिये हमारी 'मशन पार्ष. बाप' पुस्तक तथा 'जायकुमार परिउ' (कारंबा)की भूमिका देखिये।
SR No.010475
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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