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________________ संक्षिम जैन इतिहास। परस्पर मंधि कगदी। लव कृश भयोध्या में पहुंचे। सीताकी ममि परीक्षा जिममें उनकी सहायता देवोंने की । गमनं मीनासे घर चलनकी प्रार्थना की, परन्तु उन्होंने उसे अस्वीकार किया और पृथ्वीमनि आयिकाके निकट मावी होगई। माध्वी मानाकी वन्दना गम लक्ष्मणने की। इस प्रकार दक्षिण भारतमे मम और लक्ष्मणका मम्पर्क था: राजा ऐलय और उसके वंशज । भगवान मुनिसुव्रतनाथजीके ममयमें सुबतक पुत्र दक्ष नामके राजा हुये थे । यह हरिवंशी क्षत्रिय थे। उनकी गनीका नाम इला था। उनमे गजा दक्षके एलेय नामका पुत्र बोर मनोहग नामक पुत्री हुई थी। पुत्री भनिशय रूपवती थी। गजा दक्ष स्वयं अपनी पुत्रीपर भासत थ! : उसने धर्ममर्यादाका लोर करके मनोगको अपनी पत्नी बना डाला ! इसका दुष्परिणाम यह हुमा कि दक्षक विरोधी म्वयं उसके परिजन होगये । गनी इसा अपने पत्र लयको सरदारों महन ले विदेशको चल दी अनानिपूर्ण । ज्यमें कौन है ? दुर्ग देशमे रहुं नकर उन्होंने इ. पदननगर यमाया और वहां हो ये रहें। भार कसा - :: न्याय वह नर्मदातट पर आया। वहां उसने माहिष्मती नगरीका नीबागेपण किया। वहीं उसकी * उपु. पर्व ६७ व प्राबर मा. २ पृ० ५०-१५० ।
SR No.010475
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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