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________________ १०] संलित जैन इतिहास 'खुशीसे जो चाहो मांगलो।' की प्रमन्न हुई। उसने कहा कि 'भरतको गन्य दीजिये और गमचन्द्रको वनवास ।' दशरथ यह सुनकर दंग रह गये। गनीका हट था और वह स्वयं वचनबद्ध थे। मोयीने माँगा वह उन्हें देना पड़ा। पान्तु इस घटनाने उन्हें ऐमा ममोहन किया कि वह अधिक समय प्रावित न रहे। तत्काल ही घर छोड़कर मुनि रोगये। भग्न गजा हुये. गमचन्द्र वनवामी बने । वनवास रामचन्द्रजीके साथ उनकी पत्नी मीता और उनके छोटे भाई लक्ष्मण भी थे। वे दोनों बनवासमें दक्षिण भार. गमचन्द्रमोके दुम्ब मुखमें बराबर तका प्रवास। माथी रहे । भानको म' रामचन्द्रमे अत्यधिक प्रेम था। वह भावप्रेममे प्रेरित होकर उन वापिस लौटा लाने के लिये वनपे गये, परन्तु गमचन्द्रने उनकी बात नहीं मानी । बल्कि बनमें ही अपने हाथमे उनका राज्याभिषेक कर दिया । भरन अयोध्या लौट माये । गम, लक्ष्मण और सीता आगे बढ़े। मालवाक र जाकी उन्होंने सहायता की और उसका राज्य उमे दिलवा दिया। मागे चलकर बाल्पखिल्ल नरेशको उन्होंने विध्यारवीक म्लेच्छोसे छुड़ाया। वह अपने नलकू. बर नगरपे जाकर राज्य करने लगा। मेच्छ सरदार गैद्रभून उसका मंत्री और सहायक हुमा। इस प्रकार एक गज्यका स्टार करके राम-लक्ष्मण बागे चले मोर ताप्ती नदीके पास पहुंचे। वहाँ एक बझने नारायण-बलभद्रके मम्मानमें एक सुन्दर नगर रचा, जिसका नाम रामपुर क्सा । यहाँसे चले तो वे विजयपुर पहुंचे । लक्ष्मण
SR No.010475
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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