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श्री राम कक्ष्मण और रावण ।
[ ४२ वियोग में तड़फती वहांकी राजकुमारी वनमाला उन्हें पाकर अति प्रसन हुई। लक्ष्मणके समागमसे उसके प्राण बचे। यहांसे रघुकुलका अपमान करनेवाले नन्द्यावर्तके राजाको दण्ड देने के लिये राम और लक्ष्मण गए। वह राजा उनसे परास्त होकर मुनि होगया । रामलक्ष्मण वंशधर पर्वतके निकट वंशस्थत नगर में पहुंचे ।
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उस पर्वतपर रातको भयानक शब्द होते थे, जिसके कारण नगर निवासी भयभीत थे। साहसी भाइयोंने उस पर्वतपर रात विताना निश्चित किया । वे परोपकार की मूर्ति थे-लोकका कल्याण करना उन्हें अभीष्ट था । शतको वे पर्वतपर वह वहां साधु युगलकी वंदना की। उन साधुओंपर एक दैत्य उपसर्ग करता था. इसी कारण भयानक शब्द होता था । राम और लक्ष्मणने उस दैत्यका उपसर्ग नष्ट किया। उन दोनों मुनिगनोंकी उपसर्ग दूर होते ही केवलज्ञान उत्पन्न हुआ । उनका नाम कुलभूषण और देशभूषण था। बद्राप्रांतीय कुंथलगिरि पर आज भी इन मुनिराजोंका स्मारक विद्यमान है । रामचंद्र जी ने भी उनके स्मारक स्वरूप वहां पर कई जिनमंदिर बनवाये थे I
वहांसे आगे चलकर रामचन्द्रजी दण्डकारण्य में पहुंचे । उस समय तक वह मनुष्यगम्य नहीं था परन्तु रामचन्द्रजीके साहसके सामने कुछ भी अगम्य न था । वह उसमें प्रवेश करके एक कुटिया बनाकर रहने लगे। वहीं उन्होंने दो चारण मुनियोंको माहारदान दिया. जिसकी अनुमोदना एक गिद्ध पक्षीने भी की। राम लक्ष्मणके साथ रहकर वह श्रावकाचार पाळने लगा | रामने इसका नाम जटायु स्क्वा । दण्डकबनमें मागे घुसकर राम और लक्ष्मणने कौंचबा नदी