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________________ - श्री राम क्षण और रावण । युद्धमे बचे हुये म्लेच्छ मपने प्राण लेकर विंध्याचलकी पहाड़ियोंने जा छिपे और रहने लगे। यह अर्द्धवरवर दश मध्य एशियासे ऊपरका देश अनुमानित होता है। इम दशके गजाकी अध्यक्षतामें श्याममुख, कर्दमवर्ण आदि म्लेच्छ भारतमें माये थे। इन म्लेच्छोंको मार भगाने में राम और लक्ष्मणने खासी वीरतः दर्शाई थी। जनक उन गनकुमारोंपर मोहित हुये और उन्होंने अपनः गजकुमारियोंका व्याह उनके माथ काना निश्चित कर लिया। स्वयंवर रचा गया और उसमें भी गम और लक्ष्मणने अपना धनुर्कोशल प्रगट किया। सीताने गमके गर्नमें वरमाला डाली । गमचन्द्र के साथ उनका व्याह हुमा । अन्य मनकुमारी श्रमको व्याही गई। दोनों गजकुमार सानन्द कालक्षेप करने लगे। गम और लालमण राजा दशरथ बंट ये : दशरथने वृद्धा वस्थाको माया देखकर अपना आत्महित वनवास करना चाग. वह संमाम्मे विरक्त हुये। ज्येष्ठ पुत्र गमचंद्र थे। उनमें ही गनपद मिलना था। भारतकी माता ध्यान भी यह बात मुनी । वह गजा दशरथके पास गई और उन्हें मुनि - दीक्षा लेने से रोकने लगी; परन्तु दशरथ महागजके दिल३५ वाग्यका गाढा रंग चढ़ गया था। कैकयीकी बात उनको नहीं रुची। नब केकयीने अपनी बात कही। एक दफा युद्धमें कैकयीकी वीरतापर प्रसन्न होकर दशरथने उसे एक वचन दिया था। केकयाने वहीं वचन पूरा करनेके लिये दशरथसे प्रार्थना की। दशरथ मार्य राजत्व भादर्श थे। उन्होंने रानीसे कहा,
SR No.010475
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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