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३८] संलित जन इतिहास। साधु महारामकी वन्दना की और धर्मोपदेश सुना. जिससे उनके मात्र शुद्ध होगये। उन्हें अपने पर बहुत ग्लानि हुई। अपनी करनीपर वह पछताने लगे । संसारसे उन्हें वैराग्य हुआ नाशवान जीवनमें उन्होंने अमरत्वका रस पाया। बे झटपट गुरुके चरणों में मिर पड़े। गुरु विशेष ज्ञानी थे, उन्होंने अपने ज्ञान-नेत्रोंसे उनका भावी अभ्युत्थान देखा । चटसे उन्होंने उन दोनों युवकोंको अपना शिष्य बना लिया। मंत्री यह देखकर बड़ा प्रसन्न हुमा और अपना काम बनाकर वह रलपुर लौट गया।
मुनि होकर चन्द्रचूल और विजय नये जीवन में पहुंच गये। उनकी कायापलट होगई। ममिमें तपकर सोना विशुद्ध होजाता है ठीक वैसे ही तपकी ममिमें प्रवेश कर उन दोनों युवकोंकी भात्मायें भपनी कालिमा खोकर बहुत कुछ शुद्ध होगई। किन्तु इस उब दशा भी उनें एक कामनाने अपना शिकार बनाया। उन्होंने निदान किया कि हम दोनों को क्रमशः नारायण और बनभद्रका ऐश्वर्यशाली पद प्राप्त हो। वह आयुके अंतमें इस इच्लाको लिये हुए मरे। मरते समय उन्होंने शुभ आगधनायें आगीं । दोनों कुमारोंके जीव सनत्कुमार स्वर्गमे देव हुए। देव पर्यायके मुखभोगकर वे चये और भयोध्या राम और लक्ष्मण हुए। जब राम और लक्ष्मण युवक कुमार थे तब भारतपर भर्द्धवरवर
देशके रहनेवाले म्लेच्छोंका माक्रमण हुआ। राम और लक्ष्मण। राजा जनकने राम और लक्ष्मणकी सहाय
तासे इन म्लेच्छोंको मार भगाया था।