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श्री राम सक्ष्मण मौर रावन। [३७ वैचवणके सुपुत्र श्रीदत्त के साथ करना निश्चित किया । उपर राजकुमार चन्द्रचूलके कान तक कुबेरदताके अनुपम रूप-सौन्दय की बार्ता पहुंची। वह दुराचारी तो था ही-उसने कुबेरनसाको अपने भाषीन करनेके लिये कमर कस ली । राजकुमारका यह अन्याय देव कर वैश्य समुदाय इण्टा होकर गजदरबारमें पहुंचा और उन्होंने इस अत्याचारकी शिकायत महाराज प्रजापतिसे की।
__ महाराज प्रजापति अपने पुत्रसे पहले ही मप्रसक थे। इस समाचारको सुनते ही वह माग-बबुग होगये। उन्होंने न्यावदण्डको हायमें लिया और कोतवालको चंद्रचूल तथा उसके मित्र विनयको प्राणदण्ड देनेको माज्ञा दी । राजाके इस निष्पक्ष न्याय
और कठोर दण्डकी चरचा पुग्वामियोंमें हुई। बुड्ढे मंत्रीका पुत्रमोह जागा । वह नगरवामियोंको लेकर राजाकी सेवामें उपस्थित हुआ ।
मरने राजासे प्रार्थना की कि वह अपनी कठो माया लौटा में '-राज्यका एक मात्र उत्तराधिकारी चंदचूल है, उसको प्राणदान दिया जाय ।' किन्तु राजाने यह कहकर उन लोगोंकी प्रार्थना भस्वीकृत कर दी कि 'माप लोग मुझे न्यायमार्गमे च्युत करना चाहने हैं, यह अनुचित है ।' सब चुप होगए । राजहल गौर मो भी ममुचित ! किसका साहस था मो मुंह खोलता।
इस परिस्थितिमें मंत्री ने अपनी बुद्धिमे काम लिया। उन्होंने दोनों युवकोंको प्राणदण्ड देनेका भार माने ऊपर लिया। वह अपने पुत्र और राजकुमारको लेकर बनगिरि नामक पर्वतपर गए। वहांपर महावक नामक मुनिराज विराजमान थे। तीनों ही मागंतुकोंने उन