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३६] संलिम जैन इतिहास ।
श्री राम, लक्ष्मण और रावण । भगवान मुनिसुव्रतनाथजीके तीर्थकाळमें बलदेव और नारायण
श्री राम और रश्मण हुये थे। वे भयोध्याके पूर्व भव । राजा दशरथके सुपुत्र थे । बाल्यावस्थासे ही
उनकी प्रतिभा और पौरुषका प्रकाश हुआ था । यदि उनका जन्म और प्रारम्मिक जीवन उत्तर भारतमें व्यतीत हुआ था, परन्तु उनका सम्बन्ध दक्षिण भारतसे उनके उस जन्मसे भी पहलेका था और उपरात युवावस्थामें जब वे दोनों भाई वनवाममें रहे तब उनका अधिकांश समय दक्षिण भारतमें ही व्यतीत हुआ था। अच्छा, तो राम और लक्ष्मण के जीव अपने एक पूर्वभवमें दक्षिण भारतकी सुभमि पर केलि करते थे।
दक्षिणके मलय देशमें पड़ ग्रनपुर नामका नगर था। उस नगरका प्रजापति नामका राना था। उसका एक लड़का था, जिसका नाम चन्द्रचूल था । चन्द्रचूलका प्रेम राजमंत्री के पुत्र विषयसे था। अपने मां-बापके यह दोनों इकलौते बेटे थे। दोनों का बेढब गड़ प्यार होता था। लाड़प्यारकी इस. अधिकताने उन्हें समुचित शिक्षासे शून्य रक्खा । मां-बापके अनुचित मोह-ममताने उनके जीवन विगाड़ दिये । वे दोनों दुराचारी होगये ।
रत्नपुरमें कुबेर नामका एक बड़ा व्यापारी रहता था। उसका बड़ा नाम और बड़ा काम था। कुबेरदत्ता उसकी कन्या थी। वह अनुपम मुन्दरी थी। युवावस्थाको प्राप्त होने पर कुबेरदसने अपनी उस कन्याका ब्याह उसी नगर में रहनेवाले एक दूसरे प्रख्यात् सेठ