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दक्षिणा
संघ ।
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(११) तीसवें परिच्छेद में महिलाको सब धर्मोपे भेटका बरें उसके बाद सत्यको बताया है। जैन दर्शन में भी हिंसाकी विशेषता है। इसी परिच्छेद बडहिंसाका भी निषेध है।
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(१२) बनीसर्वे परिच्छेद त्यागका उपदेश देने हुये पुरुषको अपने पास कुछ भी न रखनेका विधान है उसके किए तो वह शरीर भी अनावश्यक है। मैनधर्म भी तो वही कहता है। (१३) लस्सीवें परिच्छेद में कहा गया है कि उ
बम्म केनेसे ही कोई उपा सज्जन नहीं होजाता और जन्म से नीच होनेपर भी जो नीच नहीं है वह नीच नहीं होसकते। जैन शास्त्रों बंद - पद पर नही उपदेश भग मिलना है। भगवत कुन्दकुन्दस्वामीने भी इसी बात का उपदेश दिया है। '
यह एवं ऐसी ही अन्य बातें इस बातको प्रमाणित करती है कि 'कुरल' के रचयिता एक मैनाचार्य थे, जिन्हें विद्वज्जन भी कुन्दकुन्दाचार्य बताते हैं। इस प्रकार भगवत कुन्दकुन्दके पवित्र जीवनकी रूपरेखा है ।
उनके पश्चात् जैन संबमें भगवान् उमास्वातिका विशाळ मौर विशुद्ध मस्तित्व मिकता है, म० समास्याति । जिस प्रकार भगवान् कुन्दकुन्दकी मान्यता दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों
१- पतितोद्धारक बेनधर्म देखो ।
२-विदेहो मंदिर नवि व कुलो पनि बनाइ संजुती ।
को मंदिब गुणहीनो न ह सपना जेब सावनो हो ॥१७॥