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संक्षिप्त जैन इतिहास 4
सम्प्रदायक लोगोने थी, उसी प्रकार भगवन् उम स्वाति भी दोनों मम्प्रदायों द्वारा मन्य और पूज्य दे । दिगम्बर जैन साहित्यब भगवान् कुन् कुंका वंशज प्रगट किया गया है और उनका दुसरा नाम गृच्च्छि चर्य भी लिखा है।' किन्तु उनके गृहस्थ जीवन के विषय में दिगम्बर शास्त्र मौन हैं। हां, श्वेतांबरीब त चिगम सूत्र भाष्य' में उमास्वाति महाराज के विषय में जो प्रशस्ति मिलती है, उससे पता चलता है कि उनका जन्म न्यग्रोधिका नामक स्थान में हुआ था और उनके पिता स्वाति और माता वात्सी थीं। उनका गोत्र कौमीषणि था । उनके दीक्षागुरु श्रमण घोषनंदि और विद्यागुरु वाचकाचार्य मूल नामक थे। उन्होंने इसुमपुर नामक स्थान में अपना प्रसिद्ध ग्रंथ ' तत्वार्थाधिगम सुत्र ' रचा था।' दोनों ही संप्रदायोंमें उमास्वातिको 'वाचक' पदवीसे भलंकृत किया गया है। श्वेतांबरोधी मान्यता है कि उन्होंने पांचसौ ग्रंथ रचे थे मौर
१- मा० स्वामी समन्तम पृष्ठ १४४ एवं 'लोककार्तिक' का कथन
" एतेन गुड पिच्छाचार्य पर्याधुनि सुत्रेण । व्यभिचारिता निरस्ता प्रकृतसूत्रे ॥ "
म• कुंदकुंदका भी एक नाम गुढपिच्छाचार्य था । शायद यही कारण हैं कि अवणवेगो किन्हीं शिलालेखों में म० कुंदकुंद और म० उपस्थीतिकों एक ही व्यक्ति गती लिख दिया है। (इका० मा० २ ० १६) । २-१२०० 1-888-748-424" Rapin