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दक्षिण भारतका जैन-मंत्र |
[ १४५. तीर्थ भगवानका स्मरण करके मिद्ध परमात्माका स्मरण करते हैं मोर उन्हें मटगुणोंव भिमून परब्रह्म (यंग- नाथन् बताते हैं। जैन ग्रंथों परमब्रह्म सिद्ध परमात्माको निम्नलिखित अष्टगुणम युक्त बनल्भया गया है:- (१) खामियत (२) अनंतदर्श, (३) Max319, (v.) aaaaátú, (14) qƒ«1, (&) manigaĉt, (७) जगूरुलघुत्व, (८) अन्यावाचन अन्यत्र परमात्मा बड अठ गुण शायद ही मिले।
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(४) तीसरे परिच्छेद में मंास्यागी पुरुषोंकी महिमाका वर्णन है। उसमें उनको सर्वस्वका त्यागी और पांचों इन्द्रियोंको वशमें रखकर तापसिक जीवन व्यतीत करनेवाला लिखा है । इन्द्रियविषय क्रमशः शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गन्ध बताये हैं। साथ ही साधु प्रकृति पुरुषोंहीको ब्राह्मण कहा है। जैन धर्ममें साधु सर्वस्वत्यागी, इन्द्रिय निरोषी तपस्वी कहा गया है। इन्द्रियों की संख्या नौ उनके विषय भी जैन मान्यतानुसार हैं। खास बात यह है कि ऐसा साधु जैन दृष्टिसे एक सच्चा ब्राह्मण है ।
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कुरल" में यही प्रगट
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(४) चौथे परिच्छेदले धर्मका फल मोक्ष बौर धर्म अपने मनको पवित्र रखने में बताया है। उससे मागामी जन्मोंका मार्ग बन्द होजाता है। 'भाब गहुट में श्री इन्दकुन्दाचयेने इसी प्रकार मन शुद्धिका विधान किया है। जैन सिद्धांत में पृथ्म- पापका माफ मनुष्यके भावोंसे ही किया जाता है।
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