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________________ रविन भारत । [ इस समय उनके रचे हुए निम्नलिखित मिसे है (१) दशभकि, (२) वंसपाहुर, (३) वारिपार, (५) सुगर, (५) कोषपाहर, (६) मावाहुइ (७) मेक्सपाहुर. (८)' जि . (९ सीमा (१०) •णमार. (११) पारस-पशु-' बेला, (१२) नियमसार. (१३, पासा, (११) समय सार, (१५) पचनमार। श्री कुन्दकन्दाचार्य के उपरोक्त सब ही अन्य प्राकृत भाषा चे गये थे और दिगम्बर जैन संघ लिंग एक ममत्य निधि है। किन्तु इन माचार्यने : तामिलभाषा में भी अन्यरचना की थी, किन्तु .. खेद है कि इस समय उनकी कोई मी तामिन-चना उपलब्ध नहीं है। भवत्ता तामिलो अपूर्व नीतिग्रंथ 'कुक' के विषयमें कहा जाता है कि वह श्री कुन्कुन्दाचार्यको ही रचना है। नामिल लोग . इस मन्त्रको सपना 'वेद' मानने हैं और वह है भी सर्वमान्य । शेव,.. वैष्णव, भेन, बौद्ध-सब ही उमकी शिक्षा प्रभावित हुये थे और सब ही उसे अपना पवित्र ग्रन्थ प्रगट करने है; परन्तु विद्वानोंने गहरी शोषके पश्चात् उसे श्री कुन्दकुन्दम्बामीको । रचना ठहराया है।' बन ग्रन्थ · नीबेसी' के टी उमे जैन ग्रंथही प्रगट करते है। उसपर करन में निम्नलिन्धित मी बाते हैं जो उसे सर्वथा १-साई ,मा.१ पृ०४०-४३ | "Kural was certainly composed by a Jain."-Prof. M. S. Ramaswami lyengar, sis., I 89. २- नीरा सीटोका में उसे 'मोन' मत मारावेद' कहा।
SR No.010475
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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