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________________ १४१. सलिन इतिहास। . कोणनाचार्य नामसे प्रसिद्ध हुए थे। 'बोषपामृ' कुन्दकुन्तसामीने अपनेको श्री भदवास्वामीका शिन्य लिखा है। 'पुण्या माया' ग्रंथसे स्पष्ट है कि दक्षिण माग्तरे पिदथनाडू प्रांत कुरुमाय नामक गांव, था, जिसमें कामुण्ड नामक एक मालदार सेठ रहता था। उसकी पत्नी श्रीमती थी। उही कोख से भगवान कोण. कुन्दका जन्म हुमा था। वह जन्ममे अतिशय बयोपशमको लिंग हुये था । और युश होते होते वह एक प्रकाण्ड पण्डित होगये थे। कोण्डकुन्दका गृहम्प जीवन कैसा रहा यह कुछ ज्ञात नहीं; परन्तु मुनिवीक्षा लेने पर वह पद्मनन्दि नामसे प्रसिद्ध हुये थे-माचार्य रूप में यही उनका यथार्थ नाम था । पद्मनन्दि स्वामी महान् ज्ञानबान थे-उस समय उनकी समकोटिका कोई भी विद्वान न था। विदेहस्य श्रीमंपास्वामीके समवशरणमें उनको सर्वश्रेष्ठ साधु घोषित किया गया था और वह स्वयं विदेह देशको श्रीमंधरस्वामीकी बंदना करके ज्ञान प्राप्त करने गये थे। शिवकुमार नामक कोई नृर उनके शिष्य थे। उन्होंने भारतमें जैन धर्मका खूब ही उद्योत किया था। उनका समय ईस्वी प्रथम शताब्दिकं लगभग था । द्राविड संघसे भी उनका सम्बन्ध वा । माखिर वह दक्षिणके ही नर स्न थे। कहते है कि उन्होंने ८१ पाहुड़ प्रबोंकी रचना की थी; परन्तु विशेषके लिये प्रो. ९. एम. उपाध्ये द्वारा सम्पादित "प्रवचनसार" की बची भूमिका तथा पं० जुगलकिशोरजी मुख्तारकी उसकी समालोचना (जैसिमा० मा० ३ ० ५३) देखना चाहिए। १-प्रो. चक्रवतीने इन पल्लववंशके शिवस्वन्तकुमार नृप बताया है। .. . -प्रसा• भूमिका पृ. २०।
SR No.010475
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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