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दक्षिणपन- [१५१ हुमोले बाबन डावासी मी
साधुगण अपनेको मानवी' घोषित करने गौरवका . मव बायपर्वत पते बारे हैं। भगवान कुन्दकंवसाली यचिवकी महानताको प्रगट करने के लिये पर्याप्त है। ऐसे नाचार्य प्रबास परिचय पाठकों को मारकर होगा-माहवे, उमकी एक सांकी यहां के देखें। पावन संघमें अंतिम तीर्थकर १० बावीर पर्वमान और
गणघर गौतमस्बानी के उपरांत भगवान मान्दिन्दाचार्य।न्दकुन्दको ही स्मरण करनेकी परि
पाटी प्रचलित है' जिससे कुंदकुंदवा. मी भासनकी उपना स्पष्ट होती है। शिलालेखों में उनका नाम कोण्डकुंव दिखा मिलता है, जिमका उद्गम द्राविड़ भाषा है। उमीका श्रुतिमधुररूप मंस्कृत साहित्यमें कुंकुंर प्रचलित है।' कहते है कि इन भाचार्यप्रवरका यथार्थ नाम पद्मनंदि था, परन्तु वह कुरकुंद, वक्रग्रीव, एनाचार्य मोर गृदपिच्छ नामोंमे भी प्रसिद्ध थे। वह कुंडकुंद्र नामक स्थानके अषिवामी थे, इसी कारण पर १-"मंगल मगान वीरो, मंगलम् गौतमो गणो ।
मंगळं कुन्दकुन्दायः, बनबमोऽस्तु मंगलम् ॥" २-ओन शिलालेखसंग्रह (मा० .) भूमिका देखो। ३-एका• मा• २ नं. ६४, ६६, इंऐ• मा० २३ पृष्ट १२६ ।
बकनीष मोर गपिन नामके दूसरे बाचार्य मिलते है । इस. लिये कुन्दकुन्दस्वामीके ये दोनों नाम विद्वानों द्वारा अस्वीकारे। इसी तरह का कि-मामी संदिग्ध पहिले देवा पानी