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________________ दक्षिण भारतका देव-संघ | एके जैन संघ द्व| श्रु-ज्ञानका सं क्षण और प्रर्तन हुआ था। वे प्रन्थ अबतक दक्षिण भारत के मुह बद्री नामक स्थान सुरक्षित हैं; परन्तु र उनका थोड़ा बहुत प्रचार उतर भारतमें भी होता है। श्री इन्द्रनंदि कुन नागर' के आधार यह बात हम पहले ही मगट कर चुके हैं कि इस घटना के समय जैनसंघ नंदि, देव, सेन, बीर (पिंड) मौर संघ-भेद । भद्र नामक उपसंघों विभक्त होगया था। से विभाग श्री महेंद्र कि आचार्य द्वारा किये गये थे, परन्तु इनसे कोई सिद्धांतमेव नहीं था। यह मात्र संघ पत्रवाकी सुविधा के लिये महिलाये गये प्रतीत होने हैं। शिमोगा मिले नगरत स्लो में म स्थान प्राप्त शुक मं० २०९ के लिये हुये फनी शिलालेख ( नं० ३५) से भी राष्ट है कि मद्रबहुस्वामी के बाद यहां का ●का प्रवेश हुआ था और उसी समय गणमेद उत्पन्न हुआ था । वर्षात जैनमंत्र कई उपसंघों या गणने बंट गया था। वह इस समबड़ी एक विशेष घटना थी । (२५९ उपरान्त श्री भद्रबाहु स्वामीकी परम्गमे अनेकानेक कोड मान्य, ज्ञान-विज्ञान पाग्गामी और धर्मप्रभावक निर्धन मावार्थ हुबे थे। उन मेसे इस कालसे सम्बन्ध रखनेवाले कतिपय बाबाओं का संक्षिप्त परिचय यहां पर दिया जाना अनुग्युख मूल संघ । १-संबै३० भा० २ खंड २ पृष्ठ ७२-७३ | १ - ...... भद्रबाहु स्वामी गलिन्दशत कविकाव्यर्त्तनेवि गणमेद gfigy...." -रखा० जीवनी पृष्ठ· १९३ ।
SR No.010475
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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