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.३०८] बिनविस
योगको समान करके तथा मिनालियो देशार पुगताचार्य बनवा देशको चले गये मोर मालिनी दामिल (दाविड़) देशको पायान कर गये। इसके बाद पुदंताचार्य ने बिनावितकदीका देडर, बीस सूत्रों (विंशति रूग्णात्मक सत्रों) की रचना कर और से सूत्र बिनशान्तिको पकाकर उमे भावान भूतबलिके पास भेजा। मन्होंने जिनपानित उन वाम सूत्रोंको देखा और उसे भयानु जानकर साफ मावसे उनहोंने 'षट् सप्यागम' नामक ग्रंपकी बिना की। इस समय श्री भूतालि भाचार्य संभवतः दक्षिण मदुरा विगजमान थे।' इस त इस पटवण्डागमथुनके मूल मंत्रकार भीमान महावीर, अनुत्रकार गौतमस्वामी मौर उपत्रकार
माल-पुष्पदन्तादि आरायोको समझना चाहिये ।' ' उनोंने दक्षिण भारत के प्रधान नारों में रहकर भूनशानी हा की थी । दक्षिणी भी गुणपराचार्यने कसाब पाहुर' नामक श्रममावड़ा सा खा कर प्रबचन बासस्यका परिचय दिया था। वे सूरगापायें माचार्य-पम्पसे चलकर कार्यक्षु और नागउम्ती नामके वाचायों को प्राप्त हुई थी और उन दोनों भारयोरे इन गावाभो । मले प्रकार मर्ष सुनकर यतिमाचार्यने मर पनिषों की रचना की. जिनकी संख्या छ हजार लोक-परिमार
। उपरोक्त दोनों मत्रप्रन्यों को लेकर ही उन पर 'पाण' और 'पा' नामक टोचाये रखी गई थी। इसपकार किन बार
१-सिमा०, ३ किरण पर १२०-१२८ । २-सातार सया, पा .५संह.मा. २ खंड २ पृष्ठ-1पिया, मा. ३किरपृष्ठ १३१ ।