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११४] समितीन इतिहासः। पाण्य.इन द्रविड़ राज्योंका युधिष्ठरादि पाण्डयोंसे महरा सम्बन्ध बा। विदित होता है कि जिस समय पल्लवदेशमें विराजमान भगवान् मरिहनेमि के निकट पाण्डवोंने बिनदीक्षा ली थी, उसी समय इन द्रविड़ राजाओंने भी मुनिव्रत धारण किया था। पाण्डवोंके साथ तप तपकर यह मी शत्रुजयगिरिसे मुन्न हुये थे।'
भगवान भरिष्टनेमिक तीर्थ ही कामदेव नामकुमार हुवे थे। नागकुमारका मित्र मथुराका राजकुमार महाव्याल था। यह महाव्याल पांड्यदेश गया था और पाण्ड्य गजकुमारीको व्याह साया था।' इसके पश्चात म० पार्श्वनाथके तीर्यकालमें करकण्ड रामा हुये थे, जिन्होंने चे, चोल और पाण्ड्य गजाओंको युद्ध में परास्त किया था। करकण्डुको यह जानकर हानिक दुःख हुआ था कि वे गजा चैनी थे। उन्होंने उनसे क्षमा चाही और उनका राज्य उन्हें देना चाहा; परन्तु वे अपने पुत्रोको गज्याधिकारी बनाकर स्वयं जैन मुनि होगये थे।
इन उल्लेखोंमे चेर, चोल, पाण्ड्य गज्योका माचीन मस्तित्व ही नहीं बल्कि उनके राजाभों का जैनधमांनुयायां होना भी स्पष्ट है। दक्षिणामारतमें अरु तर पर्वत, एंवर मले, निरुमूर्ति पर्वत इत्यादि
१-पंडुसुमा ति गा वि रिहाण बहकोरियो।
हेतुबप गिरितारे गिनणगया णमो तेसिं ॥" २-'गंमोर विपदुदुहिणि गाउ-द हिणमाहिउ परिरा'
-णायकुमारचरितार ३-41. पृष्ठ ७९-८०।