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________________ स्थान ऐसे है जिनसे प्रगट होता है कि वहां पायादि प्राचीन महापुरुष पहुंचे थे। दक्षिणके इन नीनों राज्यों में पाण्ड्य गव्य प्रधान था। राज तकी अपेक्षा ही नहीं बल्कि सभ्यता पाण्य राज्य। और संस्कृतिक कारण पाण्डपक्षको हरी अस म्यान है। उनका एक दीर्घकालीन गज्म या मोर उसमें उनोंने देशको ग्यूष ही समृद्धिशाली बनाया था। पाण्ड्यगय भनि पानी काममे गेमवानके साथ व्यापार करना था। कहा जाता है कि पांड्याजाने मन २५६० १० में अगष्टम मीनरके दरबार में दुत मजे छ । यही मोगों के साथ नम श्रमणाचार्य भी यनान गये थे। यनानमें भारतीय रुपरेकी बहुत खरत थी। गेमन ग्रंथकार पाटर वीनसका इस बातका मन्देह था कि यूनानी मणियां भाग्नीय परिधान पहन निर्लज्जताकी दोषी होती है । वह मारतकी मनमको 'युनी हुई पबन के नाममे पुकारता है। बिनी एवं मन यूनानी लेखन शिकायत की है कि यूनानका करोड़ों रुपया विगसिताकी वस्तुओं मृल्पमें यूनानसे मारत चला पाता है। उस समय ई, ऊन और रेशमके कपडे बनते थे। उनके बोंने सबसे नफीस चूहोंकी उन गिनी जाती थी। खमके कादेतीस प्रकरके थे । सारांश यह कि पांड्य गवताकाटमें हां विला, कला और विज्ञानकी खूब उमति की। १-जमीसो. मा. २५ पृष्ठ ८८-८९।२-जमीसो. मा.१८ पृ. २१३१३-हिस्सा.,मा०२ पृष्ठ २९३३-माइ, पृष्ट २८७-२८८ -- - - - - -- --
SR No.010475
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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