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संमिशन इतिहास ।
और चन्द्रगुप्त मुनिने भी वहींसे समाधिमरण द्वारा स्वर्गगम किया बा । उत्तर भारतमे जैन संघके दक्षिण भागमनकी इस बानों के पोषक दक्षिण भारतके वे स्थान भी हैं जहां आज भी बताया जाता है कि इस मंघके मुनिगग ठहरे थे। अोट जिलका तिरुमलय नामक स्थान इस बात के लिये प्रसिद्ध है कि वहां भद्रबाहुनीक संघबाले मुनियोंमेसे माठ हजार ठहरे थे।
वहाँ पर्वत पर डेढ़ फुट लम्ब चाणचिह्न उपकी प्राचीनताके योतक है। इसी प्रकार हसन जिले के हमवृतनगर ( जो हेमवती नदी के तट पर स्थित यः : ; के विषय में कहा जाता है कि वहाँ श्रुतकेवली भद्रबाहुजीके मंयके मुनि उत्ता भारतसे नाकर ठहरे थे ।' उपर तामिळ भाषाके प्रसिद्ध नीतिकाव्य · नालाहियार' की रचना विषयक कथासे स्पष्ट है कि उत्तर भारतमे दुर्भिनके कारण पीड़ित हुये भाट हजार मुनिगण पाण्ड्य देश तक पहुंचे थे। पाण्ड्यरेश उप्रपेरुकलीने उनका स्वागत किया था।
पाण्ड्यनरेश उनकी विद्वत्तापर ऐसा मुग्ध हुमा कि वह उनसे मला नहीं होना चाहता था। हठात् मुनियोंने पानी धर्मरक्षा के लिये चुपचाप वहांसे प्रस्थान कर दिया: परन्तु चलने के पहले उन्होंने एक एक पद्य रचकर आने२ मामन पर छोड़ दिया : यही 'नाला. रियार' काव्य बन गया । मागंशतः इन उलेखों एवं अन्य शिला
P-ममप्रास्मा० पृष्ठ ७४ । २-गैमकु०, मा. २ पृष्ठ २०६। ३-हि. भाग १४ पृष्ठ ३३२ बात नहीं कि पाण्डक नरेशका
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