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नन्द मौर मौर्य सम्राट् । [१.५ मेलादिसे सम्राट् चन्द्रगुप्तका मुनि होकर श्रुनदेवकी मदबाहुजीके साथ दक्षिणमारतमे आना है।
इन मुनियों के भागमनके कारण वहां पहलेसे प्रचलित जैन धर्मको विशेष प्रोत्साहन मिला प्रतीत होता है। किन्तु इसी समय उत्तरमारतमें नमाम्यवश जैन संघ मतमेनका शिकार बन गया था; मिसके परिणामस्प हमका एकधागार प्रवाह इधर उधर पर चला था। स्वेताम्बा संप्रदायके पूर्वरूपमें कामक' मान्यतावालोका बन्म इसी समय रोगया था और उपगंत वही विकमित होकर ईबी प्रथम शताब्दिमें स्पष्टतः श्वेताम्बर संपदायके नामसे प्रख्यात् रोगया था। मूल जैन मंघक मनुयायी निथ कामांतर 'दिगंबर' नाममे प्रसिद्ध होगये थे। यह मनाने हम पहले ही लिख चुके हैं।' मम्राट चन्द्रगुप्तके प्रसिद्ध मंत्री चाणक्य के विषय भी कहा
___ जाता है कि वह जैन धर्मानुयायी ये चाणक्य। और अपने अन्तिम जीवन में बह जेन
साधु हो गये थे । माखिर यह आचार्य हुये थे और अपने पांचौ शिष्यों सहित देश-विदेश में विहार करके वह दक्षिण भारतके वनवास नामक देशमें स्थित काचपुग्में मा विगजे। वहीं उन्होंने प्रायोपगमन मन्याम लिया था।' एक जननि चाणक्यको 'शुक्रतीर्थ' में एकान्नवास करने बतानी है। संभव है कि यह शक्कतीर्थ जैनोंका बल्गोल. य: 'बालसा' तीर्थ
१-संहि. भाग २ सण १ पृष्ठ २०३-२१० २-पूर्व पुस्तक पृष्ठ २३९-२४२ ।