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________________ १.२] संक्षिस जैन इतिहास । केवल एक कलिजका युद्ध लड़ा था परन्तु उसके शासन लेख मैसूर तक मिलते हैं। इस प्रकार मौय्योंका शासन दक्षिण भारतमें मैसुर प्रान्त तक विस्तृत था। सम्राट अशोकके धर्मशासन लेख मेसरके पति निकट मिले है। प्रमगिरि, मिद्धपुर, जटिक, रामेश्वर सम्राट अशोक। पर्वत. कोप्पल चोर बेरुन्गड़ी नामक स्थानोंसे उपलब्ध मशोक लेख वहांतक मौर्यशामनके विस्तारकं घातक हैं। किन्तु 'ब्रह्मगिरि के धर्म लेखमें सम्राट् माता-पिता और गुरुकी सेवा करनेपर जोर देते हैं, यह एक खास बात है। यह शायद इसलिये है कि यह धर्मलेख मैसूरके उस स्थानसे निकट अवस्थित है जहाँपर अशोके पितामह सम्राट चन्द्रगुप्तने आकर तपस्या की थी ! श्रवणबेलगोलसे ही चंद्रगुप्तने स्वर्गारोहण किया था। भयोकने अपने पितामह के पवित्र समाधिस्थानकी बन्दना की थी। मालम होता है, इसीलिये उन्होंने ब्रह्मगिरिक धर्मलेसमें लास तौरपर गुरु गोर माता-पिताकी सेवा करनेकी शिक्षाका समावेश किया था। मो० एस० मार० शर्मा यह प्रगट करते है। और यह हः पाले ही प्रमाणित कर चुके हैं कि बौद होनेसे पाले अशोक बेनी वा भौर अपने शेष श्रीवनमें भी उसपर जैन धर्मका काफी प्रभाव रहा था। सचोकने जैनोंका उल्लेख निर्घन्य और भमण नामसे किया था। १-ब• पृष्ठ ९४-९६ । २-संबहि, मा० १ खण्ड १ पृष्ठ २१५-२०।३-वेबई., बन्याय २।
SR No.010475
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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