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नन्द और मौ सम्राट् । उन्होंने मगधादि देशोंमें धर्मप्रचार किया और आखिर विपुकाचल पर्यतपरसे वह भी निर्वाण पषा ।
एकदा विद्युचर अपने पांचसौ साथियों सहित मथुराके उद्यानये विराजे; जहां उन पर घोर उपसर्ग हुआ । सब मुनियोंने समतापूर्वक समाधिमरण किया। उनकी पवित्र स्मृति में वहां पांचमी स्तूप निर्माण किये गये थे, जो अकबर बादशाह के समय तक वहां विद्यमान थे।"
नन्द और मौर्य सम्राट् ।
शिशु नागवंशके प्रनःपी राजाओंके पश्चात मगध साम्राज्य के अधिकारी नन्द्रवंश के राजा हुये थे। उन
समय मगधका शासक ही भारत वर्षका
नन्द - राजा ।
प्रमुख और अप्रगग्य नृप या सम्राट् समझा जाता था। इसी कारण मगधका अधिकार पाने ही नन्दराजा भी भारत के प्रधान शासक समझे जाने लगे। यहां तक कि विदेशीयूनानी लेखकोंने भी नन्दोकी प्रधानता और प्रसिद्धिका उल्लेख किया है । इन नन्दोंने सम्राट् नन्दवर्द्धन और महापद्म मुख्य थे । नंदबर्द्धनने एक भारतव्यापी दिग्विजय की थी, जिसमें उसने दक्षिण भारतको मी विजय किया था ।
दक्षिण भारतके एक शिलालेखसे यह स्पष्ट है कि नन्दग
१- मम्पू० पृ० १०-११. मथुरा में रिकी स्मृति स्तूपोषा होना इस कथानककी सत्यताका प्रमाण है । २- १०, पृष्ठ १३९ ।