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सम्राट् श्रेणिक, जम्मकुमार गौर रिपोर। [९. राजामोंने दक्षिण भारतपर म'क्रमण किये थे। इस मास्वामें यह संभव है कि श्रेणिकने राजा मृगांककी सहायता की से।
केल विजय करके श्रेणिक और जम्बुमार लौटकर मानन्द राजगृह माये और खूब विजयोत्सव मनाया।
एक रोज जम्बूकुमारका समागम मुनिराज श्री सुधर्माचार्यसे हुमा. जिनमे उन्होंने अपने पूर्वमा सुने । उनोंने जाना कि सुधर्माचार्य उनके पूर्वभव माई हैं। वह भी माईकी तरह मुनि होजाने के लिये उद्यमी होगये; परन्तु सुधर्माचार्य ने उन्हें उस समय दीक्षित नहीं किया । जम्बुकुम र माता पिताको मात्रा लेने के लिये घर चले गये । वहां उ, पितृगण के विशेष भामहमे विवाह करना पड़ा: पान्तु उन्होंने नववधुओंके माथ रहकर निकलीमें समय नहीं गंवाया । उन सबको समझा-बुझ कर वे दिगम्बा मुनि होगये । जिम समय जम्बूकम' अपनी पत्नियोंको समझा रहे थे उस
ममय विद्युन' नामका चोर उनकी विद्यचर। बसुन हा य'. निनका उसपर चढव
असा पद. ! और बर भी आने में नसी शिष्यों महिन वृ नय मुनि होमया : 4 : ह्यचक्षणपथा मद्धत पोदन के ना !,: : : प्रभ यो : इन माम! अध्ययन किया : ५.स
-उ० पृ० २.९ नम्भूमार चल नापुके मजाक पुत्र हिना है; पान्तु वह विद्युबा इनसे भिम मोर भ. पाश्वनायके तीर्थ में हुये थे।