SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 115
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सम्राट् श्रेणिक, जम्मकुमार और वियुचोर। [९५ भारतकी पश्चिमोत्तर सीमापर पैर जमाये हुये ईगनियों को सम्राट श्रेणिकने ही दूर भगा दिया था। श्रेणिकके पुत्र नभयराजकुमार थे। वह गजमंत्र और तंत्र अति प्रवीण थे। मलम होता है कि ईरानके गजवंशसे उनका प्रेममय व्यबहार था। श्रेणिकने इंगन और उसके निकटवनी देशों जिनमूर्तियां ग्यापित कराई थीं। अमयगजकुमाग्ने अपने मित्र इंगन के शाहजादे माईकके लिये स्वाम नौग्पा एक जिननि भेजी थी। आईक उस दिव्यमर्तिके दर्शन करके मा प्रतिबुद्ध हुमा कि सीघा भगवान महावी के समाशग्णमें आ मुनितीक्षाम दीक्षिन गया। निम्संदेह सम्राट घेणक और उन मुनि मगध गन्यको समृद्धिक सायर जैनधर्मकी महान सेवा और प्रभावना की थी। श्रेणकी गजधानी गन गृह नगरी थी : वहां अईदाम नाम के एक मामा मेट पहने थे. जिनकी जम्बूकुमार। पानी जिनमनी थी। फाल्गुन माम शक में एक अच्छे दिन जब चन्द्रमा गहिणी नक्षत्र पाया तब प्रात: समय उस टानीको कोखमें एक पुत्र रत्नका जन्म हुमा। माता-पिताने उमका नाम बम्बकमार मला । जम्बुकुमारने युवा होने२ सब ही शनशास्त्र विषयक विद्याभोंमें योग्यता पाठ कर की। गदरबार भी इनकी मान्यता रोगई। माद श्रेणिक इनका खा सन्मान करते थे। १-'मारि.' (मक्टूबर १९३०). ४३८ २- मा. १ पृ. २२-२३
SR No.010475
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy