SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 108
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८८] संलिम जैन इतिहास। भगवान पार्श्वनाथ के हम विहार विवरणसे स्पष्ट है कि उनका शुभागमन दक्षिण भारत देशोंमें भी हुमा था । महागष्ट्र, कोकण. कर्नाटक, द्राविड़, पल्लव आदि दक्षिणावर्ती देशों विचर करके नीर्थकर पार्श्वनाथने एक बार पुन: जैन धर्मका रद्योत किया था । दक्षिण भारतमें भगवान पार्श्वनाथ शुभागमनको चिरस्मरणीय बनाने वाले वहां वई नीर्थ माज भी उपलब्ध हैं । अन्तरीक्ष प.वनाथ. कालकुंड पावनाथ मादि तीर्थ विशेष उल. म्खनीय हैं । दक्षिण भारत के जैनी भगवान पवनायका विशेषरूपमें उत्सव भी मनान हैं। महाराजा करकंडु। भगवान पार्श्वनाथ शासनकालमें मुमसिद्ध महागजा करकंड हुये थे । इन्हें शास्त्रों में प्रत्येक बुद्ध 'हा गया है और उनकी मान्यता जैनतर लोगों में भी है। उत्तर भारतके चम्पायुमे पाटीवादन नामका जान्य करता था । उसकी नी पद्मावती मर्मती . . ए दिन है थीयर मबार होकर राजा और रानी वनविहारको गये । ३ ः विच गया और उन्हें जंगलमें लेभागा । जाना पड़की डाली कडा बच गया। पातु गनीको हाथी लिये ही चला गया । वह दन्तिपुरके पाम एक जलाशयमें जा धुमः । गनीने कूद कर आने प्राण बचाये पौर एक मालिनके घर जाकर वह गहने लगी। किंतु माफिनके कर स्वभावसे वह तंग भागई और एक स्मशान भूमिमें यह जा बैठी।
SR No.010475
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy