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महाराणा करकन्छु। [८९ कमौके वैचित्रको विकारती हुई पद्मावती रानी वहां बैठी थी कि वहीं उनोंने एक पुत्र प्रसव किया। एक मातंग वेषधारी विद्याघरने उम समय पद्मावती रानीकी सहायता की-नवजात शिशुकी रक्षाका भार उसने अपने ऊपर लिया । उम विवाषने उस बालकको खूब पढ़ाया-लिखाया और शस्त्रास्त्र चलानेमें निष्णात बनाया। बालकके हाथमें मुखी खुजली थी। इस कारण उसे 'करकंडु' नामसे पुकारने लगे।
बालक करकंड भाग्यशाली था। जब वह युवा हुआ तो दन्तिपुरके राजाका परलोकवाम होगया । उसके कोई पुत्र न था। राजमंत्रियोंने दिव्य निमित्तम कापडको राजत्यके योग्य पाकर उन्हें दन्तिपुरका गजा बनाया । गजा होने के कुछ समय पश्चान करकं. का विवाह गिरिनगरको गनकमारी मदनावलीसे होगया ।
चम्पाक गजाने करकंडका अपना माधिपत्य स्वीकारने के लिये बाध्य किया, जिसे करने मम्वीकार किया। भाखिर दोनों नरे. शोंमें युद्धकी नौबत आई: पन्नु पद्मावतीने बीच में परकर पितापुत्रकी मन्धि कगदी। धाहीवाहन पुत्रको पाकर बटुन हर्षित हुए । उन्होंने चम्मका गजपाट काण्डको माग और भाप मुनि होगये। करकण्ड मानन्द राज्य करने लगे।
एकवार करकंडकी यह कामना हुई कि उनकी माज्ञा सारे भारत निवांध गतिमे मान्य हो किंतु मंत्रियों उन्हें मालुम हुमा कि द्राविड़ दशके चोल, , और पाण्यनग्श उनकी मात्राको नहीं मानते हैं।