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भगवान् पाश्र्धनाय ।
[८७ पावभट्टाक श्रम न पादपासविहार; सन् सौराष्टलोकांश्च पवत्रान् विधेभ ॥ ८२ ।। अंगे वंगे कलिंगेऽथ कणांट कोकणे तथा । मेटमदं तथा ढाटे लिंग दवा || ८३ ॥ काश्मीरे मगध को '
न ट के । वाडे ५३ पम पममी ना ॥ ८ ॥ इत्यार्यग्वान्देशा कीमत्व महामनः । दर्शनज्ञानव विमानमेवा र ॥ ८५ ॥ १५ ॥'
भावार्थ- दर ५३। * लिग मान प्रम श्री पश्यं भगवान दशक शर. पद वार किया और अपनी दिनिका प्रदीय द मियानमक नजारा दी। फि. संयममें नः।। ३ दशक में नम का प्रमाव फराया। श्री माळवदक नम: भाइस चानान भी नोटके धमांमृतका पान किया । सनी देश जी मियानलमे नप्त था, सो पाश्वकपीन्द्रो ममतको पाकर शांत होगया था। गौर देशमें न्द्रिय नटर द्वचनोंक प्रभावम मिपाव बिल्कुल जमिनहाय ; महाट देशवासियों में अनेकाने पार्श्व भगवान मे दीक्षा ग्रहण की थी। पर्व मोष्ट देशमें भी पार्य मट्टारकका विहार हुआ था जिसमें वहां लोग पवित्र होगए थे। अंग, बंग, कलिंग, कनाटक. कोकण, मेदपाद, लाट, दाविड़, कश्मीर, मगध, कच्छ, विदर्भ, काल, पंचान, पल्लव, पास इत्यादि गासिंडके देखोंब मी बगवानके उपदेशसे सम्मान, शान, पारित लोमितिमी।