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८.] संक्षिा न इतिहास। दिन 'ज्ञान' मूर्तिमान हो उनके अभ्यन्तरमें नाचने लगा । पार्श्वनाथ साक्षात भगवान होगये-वे मर मर्वज्ञ नीर्थकर थे। ज्ञान-प्रकाशका घवल मालोक उनके चहुंओर छिटक रहा था । ज्ञानी जीव उनकी शरणमें पहुंचे । भगवान ने उन्हें सच्चा धर्म बनाया, जिसे पाकर सब ही जीव सुखी हुये-मबने समानताका अनुभव किया और मात्मस्वातंत्र्य वे अधिकारी हुये ।
अपने इस विश्वसन्देशको लेकर भगवान पार्श्वनाथन सांग चार्यदेश विहार किया। महा-जहां उनका शुभागमन हुभा वहां वहाक लोग प्रतिबुद ही सन्मार्ग ५५ भारुढ़ हुये । भगवान पाचनायक धर्मपचारका वर्णन साल कीर्ति कृत पार्श्वनाथचरित' में निम्नप्रकार लिखा हुमा है:
"तत्व मेदप्रदानेन श्रीमत्पाश्वभुमहान् । जनान कौशलदेशीयान् कुशलान् संध्यध्य ॥ ७६ ॥ भिदन् मिथ्यातमोगाढे दिव्यध्वनिप्रदीपकः । काशीदेशीयकोकान म चक्र सयमतत्परान ।। ७ ।। श्रीमन्मालम्देशीयमध्यलोकसुचातकान् । देशनामधाराभिः प्राणयामाम तीर्थगन ॥ ७८ ॥ जयंतीयान् जनान् सर्वान् मिथ्यात्वानलतापितान् । ग्यामिपियामास...पार्धचन्द्रामृतः ॥ ७९ ॥ गौराणां बवानां हि पार्श्वसमाद वितेद्रियः । Pow बर्ष कोमलतः ॥ ८..