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________________ भगवान् अरिष्टनेमि, कृष्ण और पाण्डय। [८१ २५में एक अरिएनेमिका स्पष्ट उल्लेम्व है।' और न एवं भजैन विद्वान उन्हें जैन तीर्थक । प्रकट करते भाए है।। इसके अतिरिक्त प्रभास पुगण ' में स्पष्ट लिखा हमा है कि नमि जिनने वित पर्वनमे मोका नाम लिया था। इस साक्षीने ममक्ष भ० अग्निमिक मस्तित्व शक करना व्यर्थ है । विद्वा. नो मन है कि जब नेमिपभो चचेर माई श्री कृष्णको निहापिक पुरुष माना जाना है तो कोई वजह नहीं कि नीर्थकर नमि वास्तविक पुरुष न माने जाय। डॉ० फुहा और प्रो० वारनेट साने रएतया भगवान मरिष्टनेमिका नियमिता विकार की है। इस प्रकार भगवान गिटनमि चरित्रमे यह प्र है कि उनके द्वारा दक्षिण भारत पदव, मलय भादिदगोम जन धर्मका प्रचार हुमा था और इम मश्री से दक्षिा माग्नमें न धर्मकी प्राचीनना भी सट हानी है १- जम्नु - भूवनः च अनुवनानि मयत: । मगजनन 'मन प्रग पर अवयनमनो॥२५॥ २-बी टोडामट कृत ' मोक्षमाग-प्रकाश देवा । ३-प्रो. स्वामी विरुष महिपाने ८ अर्थ किया था-टेवा अन पथ प्रदर्शकका विशेषांक [ वर्ष ३ मा ३] ऋग्वेद ( १.६ व १६) के इस मंत्रका 'स्वस्ति बस्ताक्ष्यों बरिष्टनेमिः' का अर्थ 'परिष्टनेमि (संसार सागरको पार कर जाने में समर्थ ) ऐसा मोहिनेमि तीर्थरबह हमारा कल्याणकरे' किया था। ४- बतादौ चिनो प्रेमियुगादिविमनप। सीमां या श्रमादेव मुकिमार्गस्य कारणम् ॥' सामने..८८-८९
SR No.010475
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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