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________________ भगवान् अरिष्टनेमि, कृष्ण और पाण्डव । [ ८९ उपरान्त एक मास पहले से उन्होंने योगोंका निशेष किया । और अघातिया कर्मो का नाश कर वे मुक्त होगये । उस समय समुद्रविजय, शंत्रु, प्रद्युम्न आदि भी गिरनारसे मोक्ष गये थे। इस पुनीत घटना के हर्ष देवाने म्यानन्दोत्सव मनाया था । इन्द्रने गिरिनार पर एक सिद्धशिला निर्माषी, जिसपर भगवान नेमिनाथ के ममस्न लक्षण अंकित कर दिये । इस प्रकार भगवानको मुक्त हुआ जानकर पांचों पटव शत्रुंजय पर्वत पर जा बिराजे । वहा उन्होंने गहन ध्यान माड़ा | उस ध्यान अवस्थ में उनर कौरव वंशके युनरोचन नामक दृष्टने घोर उपसर्ग किया। उमन लोहके कड़े मुकुट आदि नये और उन्हें अभिषेक पाटो पनि दिये, जिनमें उनके शरीर अवयव बुरी तरह जल गये । परन्तु साधु पाण्डवाने इम वर्गको समभावनि मन किया । युधिष्ठिर, भीम और अनंत उमी समय नुक होमिद्ध परमाना हुये सुनिराज नकुल और सहदेव भाइयों में किंचित गये | इसलिए सर्वार्थसिद्धि मेमेन्द्र हुये। बलभद्र भी हमने कर देव हु उदगन्त यादव कवकजस्तो के भौ जीवन वही 1 यादवोंकी वंश जाकर राज्य करने क हुई थी । - हरि० सर्ग ६४ । उनि नरकलिन देश में 3. की सन्त राम
SR No.010475
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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