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________________ ८. संक्षिम जैन इतिहास। हुमा । कृष्ण और बलराम ही उस प्रलयंकरी अमिसे बच पाये। वे दक्षिण मथुगको चले कि घोग्वेसे जरत्कुमारके बाणने कृष्णकी जीवनलीला समाप्त करदी ! बलगम भ्रातृमोहमें पागल होगये । पांडवोंने जब सुना नो वे बळगम के पास भाये और उनको सम्बोधा । तब बलरामने शृङ्गी पर्वतपर कृष्णके शबका अमिसंस्कार किया और वही मुनि हो वह तर तपने लगे। उस समय भगवान नेमिनाथ पल्लव देश विहार कर रहे थे। पांडव सपरिवार पहीको प्रस्थान कर गये।' पल्लादेशमें विहत भगवान अरिष्टनेमिके समवशरणमें पहुंच. कर पाण्डवों और उनकी गनियोंने भगवानकी निर्वाण। बन्दना की और उनसे धो देश सुना । सबने अपने पूर्वभव उनमे पुछे; जिनको सुनकर वे सब मंपारमे भयभीत होग। युधिष्ठिर आदि पांचों पांडवोंने तत्क्षण भगवान के चरणकमलों में मुनित्रत धारण किये । कुंती. द्रौदी भादि रानियां भी गजमती कार्यिका निकट साध्वी होगई । इसपकार मन ही मन्यस्त कर तर ताने में लीन होगए ! भब भगव । मटनेमिका निर्माणका समीर मारहा था । इसलिये वे पलवदेशसे चलकर उत्तरदिश.में विहार करते हुए गिरिनार पर्वतपर मा विराजे । उनके साथ संघ पहनदि भी माये। गिरनार पर्वतपर आकर भगान् अरिएनेमिने निर्वाणकालसे एक मास पूर्वतक धोम्देश दिया । यह उनका अंतिम प्रवचन था । -रिसर्ग ६२।
SR No.010475
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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